वर्ष 2021 में साढ़ेसाती व ढैय्या का क्या होगा आप पर असर-जानिए यहां लग्नानुसार
- Saral Jyotish Upay
शनि का नाम सुनते ही जनमानस के मन-मस्तिष्क में एक भय व्याप्त होने लगता है। जब भी शनि का राशि परिवर्तन होता है लोग यह जानने को उत्सुक होते हैं कि उनके लिए यह राशि परिवर्तन क्या फ़ल देने वाला है। शनिदेव न्यायाधिपति है। वे कर्मानुसार मनुष्य को दंड या पारितोषक प्रदान करते हैं। ज्योतिष अनुसार शनि दु:ख के स्वामी भी हैं अत: शनि के शुभ होने पर व्यक्ति सुखी और अशुभ होने पर सदैव दु:खी व चिंतित रहता है। शुभ शनि अपनी साढ़ेसाती व ढैय्या में जातक को आशातीत लाभ प्रदान करते हैं वहीं अशुभ शनि अपनी साढ़ेसाती व ढैय्या में जातक को घोर व असहनीय कष्ट देते हैं। आइए जानते हैं कि वर्ष 2021 में शनि की साढ़ेसाती व ढैय्या किस लग्न में जन्मे जातक को लाभ प्रदान करेगी एवं किस लग्न के जातक को पीड़ा देगी-
1. मेष लग्न- मेष लग्न में शनि दशमेश व लाभेश होते हैं। दशमेश व लाभेश होने के कारण मेष लग्न में जन्मे जातकों के लिए शनि शुभ फ़लदायक होते हैं। यदि मेष लग्न के जातकों की जन्मपत्रिका में शनि शुभ भावों में स्थित होकर अशुभ प्रभावों से मुक्त हों तो मेष लग्न के जातकों के लिए शनि की साढ़ेसाती व ढैय्या लाभदायक होती है। शनि की साढ़ेसाती व ढैय्या की अवधि में मेष लग्न के जातक अतीव सफ़लताएं अर्जित करते हैं। उन्हें कर्मक्षेत्र में विशेष लाभ होता है। इस अवधि में उन्हें धनलाभ होता है। उनकी पदोन्नति होती है। स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
2. वृष लग्न- वृष लग्न में शनि नवमेश व दशमेश होते हैं। नवमेश व दशमेश होने के कारण वृष लग्न में जन्मे जातकों के लिए शनि शुभ फ़लदायक होते हैं। यदि वृष लग्न के जातकों की जन्मपत्रिका में शनि शुभ भावों में स्थित होकर अशुभ प्रभावों से मुक्त हो तो वृष लग्न के जातकों के लिए शनि की साढ़ेसाती व ढैय्या लाभदायक होती है। शनि की साढ़ेसाती व ढैय्या की अवधि में वृष लग्न के जातकों को भाग्य का खूब सहयोग प्राप्त होता है। इस अवधि में उन्हें कर्मक्षेत्र में सफ़लताएं प्राप्त होती हैं। बेरोजगारों को आजीविका की प्राप्ति होती है। नौकरीपेशा लोगों को पदोन्नति मिलती है। राज्य की ओर से सहयोग प्राप्त होता है। यश, मान एवं प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। सामाजिक यश प्राप्त होता है।
3. मिथुन लग्न- मिथुन लग्न में शनि अष्टमेश व नवमेश होते हैं। अष्टमेश व नवमेश होने के कारण मिथुन लग्न में जन्मे जातकों के लिए शनि सामान्य फ़लदायक होते हैं। यदि मिथुन लग्न के जातकों की जन्मपत्रिका में शनि शुभ भावों में स्थित होकर अशुभ प्रभावों से मुक्त हों तो मिथुन लग्न के जातकों के लिए शनि की साढ़ेसाती व ढैय्या मिश्रित फ़लदायी होती है किन्तु यदि शनि की स्थिति अशुभ भावों में है तो साढ़ेसाती व ढैय्या की अवधि में मिथुन लग्न वाले जातकों को घोर व असहनीय कष्ट सहना पड़ता है। इस अवधि में दुर्घटनाओं के कारण उन्हें पीड़ा होती है। उनकी पैतृक सम्पत्ति की हानि हो सकती है किन्तु इस अवधि में उन्हें भाग्य का साथ प्राप्त होता रहता है। इस अवधि में उन्हें तीर्थयात्रा करने का अवसर प्राप्त होता है।
4. कर्क लग्न- कर्क लग्न में शनि सप्तमेश व अष्टमेश होते हैं। सप्तमेश व अष्टमेश होने के कारण कर्क लग्न में जन्मे जातकों के लिए शनि अशुभ फ़लदायक होते हैं। यदि कर्क लग्न के जातकों की जन्मपत्रिका में शनि शुभ भावों में स्थित होकर अशुभ प्रभावों से मुक्त हों तो कर्क लग्न के जातकों के लिए शनि की साढ़ेसाती व ढैय्या अशुभ फ़लदायी होती है किंतु यदि शनि की स्थिति अशुभ भावों में है तो साढ़ेसाती व ढैय्या की अवधि मिश्रित फ़लदायी होती है। इस अवधि में कर्क लग्न के जातकों के जीवनसाथी से मतभेद होते हैं। कर्क लग्न में शनि मारकेश भी होते हैं अत: कर्क लग्न के जातकों को साढ़ेसाती व ढैय्या की अवधि में मृत्युतुल्य कष्ट होने की संभावना होती है। उनका स्वास्थ्य खराब होता है। उनके जीवनसाथी का स्वास्थ्य खराब होता है। उनका अपने जीवनसाथी के साथ अलगाव होने की संभावना होती है। दुर्घटना के कारण उन्हें चोटिल होने की संभावना रहती है।
5. सिंह लग्न- सिंह लग्न में शनि षष्ठेश व सप्तमेश होते हैं। षष्ठेश व सप्तमेश होने के कारण सिंह लग्न में जन्मे जातकों के लिए शनि अशुभ फ़लदायक होते हैं। यदि सिंह लग्न के जातकों की जन्मपत्रिका में शनि शुभ भावों में स्थित होकर अशुभ प्रभावों से मुक्त हों तो सिंह लग्न के जातकों के लिए शनि की साढ़ेसाती व ढैय्या अशुभ फ़लदायी होती है किन्तु यदि शनि की स्थिति अशुभ भावों में है तो साढ़ेसाती व ढैय्या की अवधि मिश्रित फ़लदायी होती है। इस अवधि में सिंह लग्न के जातकों का स्वास्थ्य खराब होता है। वे किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित होकर कष्ट उठाते हैं। इस अवधि में उनपर कर्ज होने की भी संभावना होती है। इस अवधि में उनकी लोगों से अक्सर दुश्मनी हो जाया करती है। उनके अपने जीवनसाथी से मतभेद होते हैं। सिंह लग्न में भी शनि मारकेश होते हैं अत: सिंह लग्न के जातकों को साढ़ेसाती व ढैय्या की अवधि में मृत्युतुल्य कष्ट होने की संभावना होती है। उनके जीवनसाथी का स्वास्थ्य खराब होता है। उनका अपने जीवनसाथी के साथ विवाद व अलगाव होने की प्रबल संभावना होती है।
6. कन्या लग्न- कन्या लग्न में शनि पंचमेश व षष्ठेश होते हैं। पंचमेश व षष्ठेश होने के कारण कन्या लग्न में जन्मे जातकों के लिए शनि मिश्रित व सामान्य फ़लदायक होते हैं। कन्या लग्न के जातकों के लिए शनि की साढ़ेसाती व ढैय्या का पूर्वाद्धकाल सफ़लतादायक होता किन्तु उत्तरार्द्ध काल हानिकारक व कष्टकारक होता है। अंतिम रूप से कन्या लग्न के जातकों के लिए शनि की साढ़ेसाती व ढैय्या मिश्रित फ़लदायी होती है। इस अवधि में उन्हें प्रेम संबंधों में सफ़लता प्राप्त होती है। उन्हें उच्चशिक्षा में अच्छी सफ़लता प्राप्त होती है। संतान सुख प्राप्त होता है। किन्तु उन्हें रोग के कारण कष्ट भी उठाना पड़ता है। उन्हें आर्थिक क्षेत्र में हानि होती है। उनपर कर्ज होने की संभावना बढ़ जाती है। इस अवधि में उनके गुप्त शत्रु सक्रिय होकर उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं। उन्हें पेट संबंधी विकारों के कारण शल्य-चिकित्सा से गुजरना पड़ता है।
7. तुला लग्न- तुला लग्न में शनि चतुर्थेश व पंचमेश होते हैं। चतुर्थेश व पंचमेश होने के कारण तुला लग्न में जन्मे जातकों के लिए शनि बहुत ही शुभ फ़लदायक होते हैं। यदि तुला लग्न के जातकों की जन्मपत्रिका में शनि शुभ भावों में स्थित होकर अशुभ प्रभावों से मुक्त हों तो तुला लग्न के जातकों के लिए शनि की साढ़ेसाती व ढैय्या बहुत ही शुभ फ़लदायी होती है। केन्द्र व त्रिकोण के अधिपति होने के कारण शनि अपनी साढ़ेसाती व ढैय्या में आशातीत सफ़लता व समृद्धि प्रदान करते हैं। इस अवधि तुला लग्न के जातकों भूमि, भवन एवं वाहन का सुख प्राप्त होता है। अपने अधीनस्थों का सहयोग प्राप्त होता है। मित्रों से लाभ होता है। प्रेम संबंधों में सफ़लता मिलती है। उच्चशिक्षा में सफ़लता प्राप्त होती है। संतान से सुख मिलता है। राजनीति से जुड़े व्यक्तियों को इस अवधि में खूब जनसहयोग प्राप्त होता है। स्थायी संपत्ति की प्राप्ति होती है।
8. वृश्चिक लग्न- वृश्चिक लग्न में शनि तृतीयेश व चतुर्थेश होते हैं। तृतीयेश व चतुर्थेश होने के कारण वृश्चिक लग्न में जन्मे जातकों के लिए शनि सामान्य फ़लदायक होते हैं। वृश्चिक लग्न के जातकों के लिए शनि की साढ़ेसाती मिश्रित फ़लदायी होती है। इस अवधि में उनमें अतीव साहस का संचार होता है। भाई-बहनों से विवाद की संभावनाएं बनती हैं। भूमि,भवन व वाहन का सुख प्राप्त होता है। माता से लाभ प्राप्त होता है। नौकर-चाकर का सुख मिलता है। स्थाई संपत्ति की प्राप्ति होती है।
9. धनु लग्न- धनु लग्न में शनि द्वितीयेश व तृतीयेश होते हैं। द्वितीयेश व तृतीयेश होने के कारण धनु लग्न में जन्मे जातकों के लिए शनि अशुभ फ़लदायक होते हैं। धनु लग्न के जातकों के लिए शनि मारक भाव के स्वामी होने के कारण मारकेश भी होते हैं। यदि धनु लग्न के जातकों की जन्मपत्रिका में शनि शुभ भावों में स्थित हैं तो उनके लिए साढ़ेसाती व ढैय्या की अवधि बेहद कष्टकारक व पीड़ा देने वाली होती है। इस अवधि में उन्हें मृत्युतुल्य कष्ट होने की संभावना होती है। उनका संचित धन अचानक से व्यय हो जाता है। उन्हें आर्थिक हानि होती है। उनके नेत्रों में तकलीफ़ होती है। उनका पारिवारिक-जनों से विवाद होता है। इस अवधि में पारिवारिक विवाद के कारण उन्हें मानसिक अशान्ति होती है। उन्हें अपने घर व परिवार से अलगाव की संभावना होती है। नौकरीपेशा लोगों को इस अवधि में तबादले का सामना करना पड़ता है।
10. मकर लग्न- मकर लग्न में शनि लग्नेश व द्वितीयेश होते हैं। लग्नेश व द्वितीयेश होने के कारण मकर लग्न में जन्मे जातकों के लिए शनि मिश्रित फ़लदायक होते हैं। मकर लग्न के जातकों के लिए शनि मारक भाव के स्वामी होने के कारण मारकेश भी होते हैं। किन्तु लग्नेश होने से शुभ भी होते हैं। मकर लग्न के जातकों के लिए शनि की साढ़ेसाती व ढैय्या मिश्रित फ़लदायी होती है। साढ़ेसाती के पूर्वाद्धकाल में उन्हें लाभ होता है। वे सफ़लताएं अर्जित करते हैं। उन्हें धन-धान्य की प्राप्ति होती है। उनके कार्य सफ़ल होते हैं। उनका स्वास्थ्य अच्छा रहता है। किन्तु साढ़ेसाती का उत्तरार्द्धकाल मकर लग्न के जातकों के लिए कष्टकारक होता है। उनके संचित धन की हानि होती है। उन्हें पारिवारिक विवाद के कारण मानसिक अशांति होती है। उनका अपने कुटुम्बियों से विवाद होता है। उनके नेत्रों में विकार उत्पन्न होता है। उन्हें अपने घर से दूर निवास करना पड़ सकता है। नौकरीपेशा व्यक्तियों का स्थानांतरण होने के संभावना होती है।
11. कुंभ लग्न- कुंभ लग्न में शनि व्ययेश व लग्नेश होते हैं। लग्नेश व द्वितीयेश होने के कारण कुंभ लग्न में जन्मे जातकों के लिए शनि मिश्रित फ़लदायक होते हैं। कुंभ लग्न के जातकों के लिए शनि लग्नेश होने से शुभ भी होते हैं। कुंभ लग्न में जातकों के लिए शनि की साढ़ेसाती अपेक्षाकृत शुभ होती है। कुंभ लग्न के जातकों को शनि की साढ़ेसाती व ढैय्या के दौरान जीवन में लाभ व सफ़लताएं प्राप्त होती हैं। उन्हें उत्तम शैय्या सुख की प्राप्ति होती है। उनके कार्य व यात्राएं सफ़ल होती हैं। उन्हें विदेश यात्राओं के अवसर प्राप्त होते हैं। इस अवधि में उनका व्यय अधिक होता है। उन्हें कोर्ट-कचहरी के मामलों में पराजय का सामना करना पड़ सकता है।
12. मीन लग्न- मीन लग्न में शनि लाभेश व व्ययेश होते हैं। लाभेश व व्ययेश होने के कारण मीन लग्न के जातकों के लिए शनि शुभ होते हैं। यदि मीन लग्न के जातकों की जन्मपत्रिका में शनि शुभ भावों में स्थित होकर अशुभ प्रभावों से मुक्त हैं तो उनके लिए साढ़ेसाती व ढैय्या की अवधि बहुत लाभदायक सिद्ध होती है। इस अवधि में उन्हें अतीव धनलाभ होता है। उनकी आय में बढ़ोत्तरी होती है। उनका स्वास्थ्य अच्छा रहता है। उन्हें पदोन्नति के अवसर प्राप्त होते हैं। उन्हें कोर्ट-कचहरी के मामलों में लाभ होता है। इसके साथ ही उन्हें अनिद्रा के कारण थोड़ी परेशानी हो सकती है। उनका व्यय अधिक होता है। इस अवधि में वे भोग-विलास की सामग्री पर खूब व्यय करते हैं। इस अवधि में उन्हें उत्तम दाम्पत्य सुख की प्राप्ति होती है।
(विशेष- फ़लित लग्नानुसार दिया गया है। पाठकों की जन्मपत्रिका में शनि की स्थिति एवं शनि पर शुभाशुभ प्रभावों से उनके फ़लित में परिवर्तन संभव है।)
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Online Webnair Vedic Astrology Classes
Astrology
are said to be the eyes of The Veda. Astrology is the science of studying
stars, their movements, relationships, and their impact on human beings.
As a human being takes birth on a particular date, time and place,
he/she gets the effects of planetary position in the sky at that time.
This affects one’s attitude, body makeup, lifestyle, outlook,
career, wealth, etc.
Objective:
Objective of Institute of Vedic Astrology is to impart deep insights
and knowledge on various aspects of Vedic astrology in simple and
easy-to-understand language through our distance learning mode of
education. Thus, we offer comprehensive and organized study material
to astrology for beginners to advance learners.